एक प्राइवेट कम्पनी के सेल्स विभाग में मैं कार्यरत था .बिलों को सरकारी दफ्तरों में जमा करना, बिल पास करवाने के लिए बाबुओं और अधिकारिओं के पास जाना, अनुरोध कर चेक प्राप्त करना मेरे लिए , मेरी नौकरी को बचाने के लिए जरूरी था । एक बार मैं बहुत परेशान था । बिल जमा किए हुए बीस दिनों से अधिक हो चुके थे । अधिकारी रोज़ मुझे बुलाते , बातें करते , और कहते "{ आज नहीं ' , हर बार यही उत्तर पाकर मैं उनके सामने जिद कर बैठ ही गया । उन्हें भी शायद मुझ पर दया आगई थी । बोले , " आप फ़िर आ गए , हो जाएगा , हो जाएगा मगर आज नहीं।" मैंने दुःख से कहा " , सर प्लीज़ दो लाख का बिल है । " अब आप इतने दिनों से चक्कर लगा रहे हैं तो आप को बता ही दूँ " अधिकारी ने कहा ।
इधर आ जाइए "उनहोंने अपनी कुर्सी के बगल में बुलाया और टेबल के तीन दराजों को दिखाते हुए कहा" ये देखिये तीन दराज़ हैं ? पहला - आज नहीं , दूसरा 'अभी नहीं " , और सबसे नीचे तीसरा - " कभी नहीं" । जिन बिलों के साथ ""कुछ " दिया जाता है अडवांस में उसी के अनुसार उन्हें इसमें दाल दिया जाता है । जो कुछ नहीं देते उनके बिल "कभी नहीं । और जो कुछ दे सकते है और देते नहीं वे "अभी नहीं " में । " तो आपका बिल "अभी नहीं के दराज़ में है । आशा है आप समझ गए होगें ।
प्रतिशत के हिसाब से दो सौ रूपये मैंने दिए और दूसरे दिन दो लाख का चेक मेरे हाथ में था .
Sunday, May 17, 2009
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