Monday, May 11, 2009

Exploitation

अचानक फोन की घंटी घनघना उठी। शाम के सात बज रहे थे। मैं किचेन से दौडी ' हाय कौन हो सकता है? पल भर में रिसीवर मेरे हाथ में था।'हाय कौन शालिनी ?' उधर से आवाज़ आई ' क्या कर रही थी? मैंने कहा 'किचेन में एक रिसेपी बनाने की कोशिश कर रही थी। 'यार कल सुबह अपनी बाई को भेजेगी पाँच मिनिट को -- हाँ वोही कावेरी ---वो बोल रही थी कोई काम वाली बाई मेरेलिए खोज रखी है। मुझे ले जाएगी बात करवाने के लिए.----कार से ले जाउंगी यार बडे नखरें है इनके..चल रखती हूँ ---याद से भेज देना --बाई --बाई।
कितनी स्वीट लेडी है शालिनी, सो हेल्पफुल। मैंने सोचा क्या हरज है एक दूसरे की हेल्प तो करनी ही चाहिए। कावेरी को समझा बुझा कर शालिनी के घर जाने को राज़ी करा दिया मैंने। दूसरे दिन कावेरी ने जो कुछ बताया मैं सोचने को मजबूर थी। कावेरी दूसरे दिन सुबह सुबह पहुँच गई शालिनी के पास। " शालिनी मेमसाब जल्दी करो, चलना है तो, मेरे कू काम पर भी जाना है। देर होने से बाजू वाली मेमसाब झिक झिक करेगी। "हाँ हाँ चलती हूँ। चल, जब तक मैं तैयार होती हूँ मेरे बर्तन मांझ दे। मेरी कामवाली नही आई है। खाली खड़ी ही तो है - मैं रेडी होती, हाँ।
बर्तन माझ कर चमक गए, किचेन साफ़ हो गया। ढेरों बर्तन थे। शायद बड़ी पार्टी रही होगी। तैयार हो कर मेमसाब चाय पीती रही। धीरे..धीरे..चुस्कियां। कावेरी इंतज़ार करती रही। दस मिनिट ...पन्द्रह मिनिट। शायद फिर फ़ोन पर बात होने लगी - अरे यार मीता !!! आज के किचेन का काम तो निपट गया। पार्टी में कितने बर्तन हो जाते हैं। किचेन भी तो फैल जाता है न? कावेरी को नौकरानी से बात कराने के बहाने बुलवाया था। लेकिन जाना तो पड़ेगा ना।
"जल्दी करो मेमसाब, चलना है तो। नही तो मैं जाती काम पर।" अच्छा अच्छा चल, गैराज से कार निकाली - ज्यादा देर हो गई क्या? न हो तो कल चलें? जैसा तू बोल कावेरी!! कल चलेगी क्या?

2 comments:

alka mishra said...

प्रिय बहन
जय हिंद
हिंदी साहित्य को समृध्द करने की दिशा में आपके द्वारा यह कारगर प्रयास है
ब्लॉग जगत में अपनी आमद दर्ज कराने का शुक्रिया सीधी चोट प्रभावशाली लगी
अगर आप अपने अन्नदाता किसानों और धरती माँ का कर्ज उतारना चाहते हैं तो कृपया मेरासमस्त पर पधारिये और जानकारियों का खुद भी लाभ उठाएं तथा किसानों एवं रोगियों को भी लाभान्वित करें

Unknown said...

very well written and all the blogs are heart touching. i liked the one about trees among those that i have read.
sdsingh
ranchi