क्लास में मुहावरों और लोकोक्क्तियों का पठन पाठन चल रहा था । छात्रों की रुची और पार्टिसिपेशन अपने चरम पर था । अचानक ""एक अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता " प्रचलित लोकोक्ति पर छात्र अटक गये ."इसका क्या अर्थ हुआ टीचर जी ? ""एक अकेला आदमी बडे काम को सफल नहीं कर सकता " मैनें कहा ।
"ये गलत है , इसका अर्थ गलत है" क्लास कुछ असहज हो उठी । कुछ खलबली , फुसफुसाहट सी मेरे कानों ने सुनी । चार पाँच लड़कों का समूह जो अक्सर ही साथ उठ ते बैठते थे , कुछ तन कर बैठ गये । मैंने चारों और एक स्टर्न दृष्टि डाली
चालीस - - पैंतालीस की संख्या , किशोर और किशोरीओं का सम्मिलित क्लास । लड़किओं में निर्लिप्त नीरस सा भावः । ऊंह यह क्या शुरू कर दिया लड़कों ने । विरक्ति , झुंझ लाहट -- पल भर लगा ये सब देखेने मैं ।
मेरे दिमाग में एक बिजली सी कौंधी --- भारत के भविष्य , प्रतिष्ठित विद्यालय के द्वादश वर्ग के छात्र , इनमें ही कोई भावी डाक्टर साइंटिस्ट , इंजीनियर एयर फोर्स आफीसर आई .अफ.अस होगा.अपनीअपनी अलग अलग सोच . कोई नेता होगा तो कोई वक्ता कोई गांधी या गौतम ।
समय नहीं था । छात्रों की आकुलता बढ़ती जा रही थी । बोलने की अनुमति के लिए हाथ लपलपा रहे थे । मैं --- मैं-- मैं-- मैम्म --मैंम -- ऐसा लग रहा था समुन्द्र में उफान आ गया हो । घबराहट में मेरे मुहं से निकल गया। "हाँ -- पीछे -- आखीर में जो बैठा है --तुम - चंदन - "वह हडबडा कर इधर उधर देखने लगा। मानो विश्वास ही न हुआ हो की उसे ही कहा जा रहा है । मैंने फ़िर कहा "हाँ--हाँ - चंदन तुम - तुम ही ।" गला फूट रहा था , आवाज़ गंभीर , भारी हिस्स हिस्स करती सी कमर से नीचे खिसकती पैंट को ऊपर खींचते हुए झूम कर उठ खड़ा हुआ ।। सभी लड़कों ने हिकारत भरी नज़रों से पीछे घूम कर देखा और मुस्कुरा उठे ।
चंदन ने मेरी आंखों में सीधे देखा । और बोलने लगा।
दीप से दीप जलाते क्यूँ ?स्वयं सुलगते दूजे को सुल गाते क्यों ? एक ही दीप की लौ से क्या हजारों दीप सुलग नहीं उठते ? एक दहकते अंगारे से क्या भयंकर आग नहीं लग जाती ?
विचारों की कौंध का स्पर्ष क्या हजारों मन मस्तिष्क को झकझोर नहीं देता? स्वामी रामदेव तो एक ही चना है क्या उन्होंने योग से दुनिया में तहलका नहीं मचा दिया ?
गांधी तो अकेले ही चले थे ? हो लिया न संसार उनके साथ ।
विचारों की गहनता का चना , दिल को दिल से छूने वाला यह बीज चना प्रतीक है मैम्म , एक ही चना भी भाद फोड़ता है , दीप से दीप जलाता है और सब कुछ बदल जाता है ।
आप क्या कहेंगी ? दिशा को बदलने का, मन को छूकर मानसिक भूकंप लेन वाला कोई एक नन्हा सा विचारों का अनु बम "{चना" ही होता है.जो जागृति का भाद फोड़ देता है। मैं कहाँ ग़लत हूँ ।
जादू -- जादू-- जादू वाणी का जादू , मैं मुग्ध थी अनेक छात्रों की तरह मेरा एक और छात्र मौलिकता की राह पर चल पड़ा था । मंत्र मुग्ध सहपाठी उसे निहार रहे थे । और पसीने से लत पथ
क्या करूं क्या न करूं -- वह क्या सब बोल गया । वह स्वयं हतप्रभ था । तालियाँ जोर जोर से बजने लगीं मैं सोच रही थी इसी तरह निकल पड़ा होगा भाषा और भावों का तीव्र प्रवाह जब क्रौंच पक्षी के उस वियोग विलाप को बाल्मीकी ने सुना होगा ।
कक्षा की इस घटना को आज दस वर्ष बीत चुके हैं । मेरा वह छात्र सक्षम वक्ता और सफल नेता के रूप में प्रतिष्ठित है.
Sunday, May 17, 2009
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