बहुत भला था स्नेह तुम्हारा ,
जिसने जीवन पथ बदला ।
बहुत भली थी निष्ठुरता वह,
जिससे मन का द्वार खुला।
देख रही थी स्वप्न सुनहरा ,
तुम ही हो जीवन आधार ।
बीन रही थी इर्द गिर्द ही ,
अपने सपनों का संसार।
सूरज की किरने मुस्काईं,
फूलों ने भी ली अंगडाई।
थपक थपक कर मुझे जगाया,
किंतु रही मैं ही अलसायी।
बहुत भला था दर्प तुम्हारा ,
जिसने चूर चूर कर डाला ।
बहुत भला था स्नेह तुम्हारा ,
जिसने जीवन पथ बदला।
अब न रहेंगी वे आशाएं ,
अब न रहेंगी वे इच्छाएं
अब पग संभल संभल रखेगा ,
अब न मोह घिरने पायेगा
बहुत भली थी निष्ठुरता वह ,
जिससे मन का द्वार खुला .
Sunday, May 17, 2009
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