नगरों, महा नगरों में लगातार ऊंची ऊंची अट्टालिकाएं
जहाँ आकाश नहीं , शुद्ध वायु नहीं
पानी नहीं , और कहने को भूमि नहीं,
दम घुटा जा रहा है, जीने के लिए ,
तरस रहा है एक बूंद पानी के लिए ,
छटपटा रहा है साँस लेने के लिए ,
जहाँ आकाश नही शुद्ध वायु नहीं ।
सभाएँ हो रहीं हैं , विज्ञापन दिए जा रहे हैं
भाषण पे भाषण हो रहे हैं , रिसर्च जारी है.
"पर्यावरण दिवस" मनाया जा रहा है , फ़िर भी
ऊंची से ऊंची अट्टालिकाएं ------
सब कुछ वैसा ही चल रहाहै
कहीं कोई शांती नहीं , कोई ठहराव नहीं,
हम हैं की भागे जा रहे हैं, भागे जा रहे हैं ,
और भागे जा रहे हैं ------------
Friday, June 5, 2009
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1 comment:
kounsa prayavaran,kounsa sudhar. hame apni chinta khud karni hai. narayan narayan
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