मैं रोई .
मैं रोई ,फूट -फूट कर रोई .
क्यूँकी ,
आज वह मर गई .
तेरह दिनों तक ज़िंदा लाश थी
.अहसास था ,स्पनंदन था
.ज़िंदगी से हार गई
..हाँ ,आज वह मर गई
वह कौन थी तुम्हारी ?
न देखा .न जान न पहचान ,
न बेटी ,न माँ न बहन .हाँ
वह सामाजिक रिश्ते में न सही ,
मगर मेरे मन का हिस्सा थी
,तन का टुकड़ा थी खून से सिंची
.।मेरे सीने से जकड़ी थी मेरी अपनी थी
पीड़ा हर आह सिहराया ,तड़पाया .
वह इंसानियत थी जो इतने करीब थी .
हैवानियत के दरिंदों बोटी -बोटी काटी
मासूमियत का परिंदा ,सपनों का गुलिंस्ता
.वह मासूम फाख्त्ता थी ,वह इंसानियत थी ,
जिसकी मौत पर मैं रोई फूट फूट कर रोई
,अपनी लाचारी पर ,अपनी कमजोरी पर
,मैं कुछ कर न सकी ,क्यों कुछ कर न सकी
मैं रोई फूट -फूट कर रोई
मैं रोई ,फूट -फूट कर रोई .
क्यूँकी ,
आज वह मर गई .
तेरह दिनों तक ज़िंदा लाश थी
.अहसास था ,स्पनंदन था
.ज़िंदगी से हार गई
..हाँ ,आज वह मर गई
वह कौन थी तुम्हारी ?
न देखा .न जान न पहचान ,
न बेटी ,न माँ न बहन .हाँ
वह सामाजिक रिश्ते में न सही ,
मगर मेरे मन का हिस्सा थी
,तन का टुकड़ा थी खून से सिंची
.।मेरे सीने से जकड़ी थी मेरी अपनी थी
पीड़ा हर आह सिहराया ,तड़पाया .
वह इंसानियत थी जो इतने करीब थी .
हैवानियत के दरिंदों बोटी -बोटी काटी
मासूमियत का परिंदा ,सपनों का गुलिंस्ता
.वह मासूम फाख्त्ता थी ,वह इंसानियत थी ,
जिसकी मौत पर मैं रोई फूट फूट कर रोई
,अपनी लाचारी पर ,अपनी कमजोरी पर
,मैं कुछ कर न सकी ,क्यों कुछ कर न सकी
मैं रोई फूट -फूट कर रोई